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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...377
सुपरिणाम
चक्र- मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमेरुदण्ड, गुर्दे, पैर, स्नायु तंत्र एवं निचला मस्तिष्क। 58. कयेन शौ-इन् मुद्रा
गर्भधातुमण्डल, वज्रधातुमण्डल, होम आदि धार्मिक क्रियाओं के निमित्त की जाने वाली यह मुद्रा अग्नि या ज्वाला की प्रतीक है जो सभी अशुद्धियों का नाश कर देती है। इसकी विधि यह हैविधि
दोनों हथेलियों को सामने की ओर अभिमुख कर अंगूठों को हथेली के भीतर मोड़ें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को अंगूठे के ऊपर मोड़ें तथा तर्जनी को आगे की ओर फैलाकर उनके अग्रभागों को संयुक्त करने पर ‘कयेनशौ-इन्' मुद्रा बनती है।
कयेन-शी-इन मुद्रा