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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियों ...325 केवल अभिव्यक्ति की अपेक्षा से अन्तर है। यह मुद्रा अन्दर आने के लिए आज्ञा
और शक्ति प्राप्त करने की सूचक है। यह अंजलि मुद्रा के समान है। विधि ___ नमस्कार मुद्रा की भाँति हथेलियों को मिलायें और अंगुलियों को ऊर्ध्व प्रसरित करें तथा अंगूठों को तर्जनी के निचले हिस्से के जोड़ पर स्पर्श करते हुए रखें, तब चौ-बुत्सु-फु-इन् मुद्रा कहलाती है।22
चौ-बुन्सु-पु-हन् मुद्रा सुपरिणाम
• आकाश एवं जल तत्त्व को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा रक्त विकार, शारीरिक रूक्षता, हृदय रोग, लसिका, वीर्य प्रवाह से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण कर शरीर को कान्तिमय, स्निग्ध एवं हृदय को शक्तिशाली बनाती है।
• सहस्रार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को प्रभावित करते हुए मस्तिष्क में मेरुजल का संचालन एवं कामेच्छाओं पर नियंत्रण करती है। अन्य ग्रंथियों के संचालन में सहायक बनती है और पेट के पर्दे के नीचे स्थित अवयवों के कार्यों का नियमन करती है।