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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ... 317 आँखों की सूचक कहा गया है। यह उत्तराबोधि मुद्रा से मिलती-जुलती है। विधि
दोनों हाथों को एक-दूसरे के सन्मुख रखते हुए तर्जनी को छोड़कर शेष अंगुलियों को अन्दर की ओर अन्तर्ग्रथित करें तथा तर्जनी के अग्रभाग ऊपर की ओर परस्पर संयुक्त रहें, इस भाँति चकषुर मुद्रा बनती है। 15
चकपुर मुद्रा
सुपरिणाम
पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व को संतुलित कर यह मुद्रा हड्डी आदि ठोस तत्त्वों को मजबूत बनाती है तथा मोटापा, दुर्बलता आदि को न्यून करती है । • मूलाधार एवं आज्ञा चक्र को संतुलित करते हुए यह मुद्रा प्रजनन ग्रंथि, मेरुदण्ड, गुर्दे, मस्तिष्क एवं स्नायुतंत्र के कार्यों को सम्यक करती है।
• दर्शन एवं शक्ति केन्द्र को सक्रिय करते हुए यह मुद्रा पूर्वाभास एवं अतिन्द्रिय क्षमता को जागृत करती है, कामवृत्तियों को शान्त रखती है तथा कुण्डलिनी का स्थान होने से साधना में सहायक बनती है ।