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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...311
बाण मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा जल एवं वायु तत्त्वों को संतुलित करती है। इससे हृदय में रूधिरअभिसंचरण की क्रिया संतुलित एवं रक्त विकार आदि दूर होते हैं।
• स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा पेट के पर्दे के नीचे स्थित अवयवों के कार्यों का नियमन करती है तथा वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय निग्रह आदि शक्तियों को जागृत करती है।
• एक्युप्रेशर पद्धति के अनुसार बालकों में उच्छंखलता आदि को नियंत्रित करती है तथा नाभि चक्र से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान होता है। 11. बोन्-जिकि-इन् मुद्रा
यह जापान में बोन्-जिकि-इन् मुद्रा और भारत में उत्तराबोधि या क्षेपण मुद्रा के नाम से पहचानी जाती है। इस तान्त्रिक मुद्रा को जापानी बौद्ध परम्परा के अनुयायी धारण करते हैं। यह मुद्रा विशेष रूप से वज्र धातु मण्डल से सम्बन्धित क्रियाओं के समय की जाती है। इस संयुक्त मुद्रा को छाती के स्तर पर धारण करते हैं।