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गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधियाँ ...309 विधि
दोनों हथेलियों को सम्मिलित कर अंगुलियों को एक-दूसरे में गुम्फित करें तथा दायें अंगूठे को बायें अंगूठे पर Cross करते हुए रखने पर बाह्य बंध मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• वायु एवं अग्नि तत्त्व में संतुलन स्थापित करते हुए यह मुद्रा कुपित वायु को प्रशान्त करती है। गठिया, साइटिका, वायुशूल, लकवा आदि रोगों का निवारण करती है और वायु के दर्द, सन्धिवात, अपच आदि को दूर करती है।
• इस मुद्रा के प्रयोग से अनाहत एवं विशुद्धि केन्द्र प्रभावित होते हैं जिससे विशेष शक्तियों का जागरण होता है। ___थायरॉइड एवं थायमस ग्रंथियों को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा कैल्सियम, आयोडीन, कॉलेस्ट्राल के संतुलन एवं हड्डियों के विकास आदि में सहायक बनती है। आवाज को मधुर, मोहक एवं सुरीला बनाती है तथा बच्चों के विकास एवं जीवन निर्माण में भी विशेष लाभकारी है। 9. बकु-जौ-इन् मुद्रा
जापान देश में बौद्ध धर्म का अनुसरण करने वाले श्रद्धालु वर्ग इस मुद्रा को धारण करते हैं। यह मुद्रा मुख्यत: वज्रधातु मण्डल के धार्मिक क्रियाकलापों के वक्त प्रदर्शित की जाती है। यह संयुक्त मुद्रा ‘जौ इन्' मुद्रा के समान कही गई है। विधि __दोनों हथेलियों को मध्य भाग में इस तरह रखें कि अंगुलियाँ मध्य दिशा की ओर फैली हुई, दूसरे पोर तक एक-दूसरे में अन्तर्ग्रथित हुई और अंगूठे के अग्रभाग एक-दूसरे को स्पर्श करते हुए रहने पर बकु-जौ-इन् मुद्रा बनती है।' सुपरिणाम
यह मुद्रा जल एवं आकाश तत्त्व का नियमन करती है। इससे शरीरस्थ विषद्रव्यों एवं विजातीय तत्त्वों का निष्कासन होता है।
यह मुद्रा सहस्रार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करते हुए संशय, विपर्यय एवं विकल्पमय स्थिति को शान्त कर निर्विकल्प एवं असम्प्रज्ञात