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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप...263
70. त्रैलोक्य विजय मुद्रा
स्वर्ग, मृत्यु एवं पाताल तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने की सूचक यह मुद्रा धार्मिक प्रसंगों के दरम्यान अपनायी जाती है। इसकी विधि निम्न हैविधि
हथेलियों को बाहर की तरफ अभिमुख करते हुए अंगूठों को हथेली में मोड़ें, मध्यमा और अनामिका अंगूठों के ऊपर मुड़ी हुई, तर्जनी और कनिष्ठिका ऊपर उठी हुई, दायां हाथ बायें हाथ को क्रॉस करता हुआ तथा कनिष्ठिका आपस में गूंथी हुई रहने पर त्रैलोक्य विजय मुद्रा बनती है।
त्रैलोक्य विजय मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा करने से अग्नि एवं जल तत्त्व संतुलित होते हैं। यह मत्र दोष एवं पित्त से उभरने वाली बीमारियों का भी परिहार करती है। • इस मुद्रा से मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावित होते हैं। इससे मधुमेह, कब्ज, पाचन विकृतियों, एसिडिटी आदि का भी शमन होता है। • एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के