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258... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन प्रसरित कर उनके अग्रभागों को मिलाना, शाक्यमुनि मुद्रा है।74 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करती है। कुपित वायु, गठिया, साइटिका, वायुशूल, लकवा, अपच, गैस, एसिडिटी आदि कई रोगों के निवारण में यह मुद्रा सहायक बनती है। घुटने के दर्द, सन्धिवात, वायुशूल आदि में भी लाभदायी है। • मणिपुर एवं अनाहत चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा अग्नि तत्त्व एवं पाचक रसों का नियंत्रण, रक्तशर्करा, सोडियम आदि का संतुलन, रोग-प्रतिरोधक शक्ति का विकास, तनाव एवं कार्य शक्ति का नियमन करती है। • थायमस एवं एड्रिनल ग्रंथि तंत्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा बालकों के विकास में विशेष उपयोगी है। 66. शुमि-सेन्-हौ-इन् मुद्रा __यह मुद्रा भारत में सुमेरू मुद्रा के नाम से प्रसिद्ध है। इस मुद्रा का प्रयोग होम आदि धार्मिक कृत्यों में किया जाता है। शेष वर्णन पूर्ववत।
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शुभि-सेन्-चौ-इन् मुद्रा