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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...257 सुपरिणाम
• शक्र मुद्रा को धारण करने से मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र स्वस्थ एवं सक्रिय रहते हैं। इससे व्यक्तित्व गुण सम्पन्न बनता है तथा हृदय विकार, रक्त विकार, कंठ विकार एवं प्रजनन अंग सम्बन्धी विकार दूर होते हैं। • अग्नि, जल एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हए यह पाचन शक्ति को विकसित करती है, Acidity, Dehydration आदि में आराम देती है तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास करती है। • प्रजनन, एड्रिनल, थायरॉइड आदि ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा आवाज, स्वभाव, संचार व्यवस्था, हलन-चलन श्वसन आदि पर नियंत्रण करती है। 65. शाक्यमुनि मुद्रा
विविध धार्मिक कार्यों के अवसर पर दर्शायी जाती यह मुद्रा शाक्यमुनि (बुद्ध) से संबंधित है। शेष वर्णन पूर्ववत। विधि
दोनों हथेलियों को समीप कर अंगूठों को ऊपर उठायें, तर्जनी और अनामिका को हथेली के भीतर मोड़ें तथा मध्यमा और कनिष्ठिका को ऊर्ध्व
शाक्यमुनि मुद्रा