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254... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम
चक्र- मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, स्वर तंत्र, नाक, कान, गला एवं मुँह। 63. शब्द मुद्रा __यह तान्त्रिक मुद्रा द्विविध रूपों में प्राप्त होती है। देवी देवताओं या विशिष्ट अतिथियों की पूजा के प्रारंभ में कुछ सामग्रियाँ चढ़ाई जाती है उनमें से यह एक है। इसे संगीत की सूचक कहा गया है। मुख्य रूप से यह मुद्रा वज्रायना देवी तारा की पूजा से सम्बन्धित है। इसे छाती के स्तर पर धारण करते हैं। शेष वर्णन पूर्ववत। प्रथम विधि
इस मुद्रा को बनाने के लिए दायीं हथेली को नीचे की तरफ अभिमुख करें, तर्जनी और मध्यमा अंगलियों को मध्यभाग में हल्की सी ऊपर की तरफ फैलायें, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली में मोड़ें तथा अंगूठा-अनामिका
और कनिष्ठिका के प्रथम पोर को स्पर्श करें। बायें हाथ में भी इसी तरह की मुद्रा बनायें। दायां हाथ हल्का सा बायें के ऊपर रखा जाता है।
शब्द मुद्रा-1