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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...239 को एकाग्र एवं कुशाग्र बनाती है। अनेक दिव्य गुणों का स्फुटन एवं सद्भावों का अंकुरण करती है। • आनंद एवं दर्शन केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा कषाय एवं वासनाओं पर नियंत्रण तथा भावों का निर्मलीकरण करती है। 50. न्यारै-केन्-इन् मुद्रा
___भारत में इस मुद्रा को ज्ञानमुष्टि मुद्रा और तथागत मुष्टि मुद्रा कहते हैं। जापानी बौद्ध परम्परा में समादृत यह मुद्रा छः तत्त्व मुष्ठि मुद्राओं में से एक है। यह संयुक्त मुद्रा इस प्रकार हैविधि
दायें हाथ को मुट्ठी रूप में बांधकर उसे मध्यभाग की तरफ रखें। बायें हाथ को भी मध्यभाग की तरफ कर तर्जनी को ऊर्ध्व प्रसरित करें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को हथेली में मोड़ें, अंगूठे का प्रथम पोर तर्जनी के दूसरे पोर का स्पर्श करें तथा बायीं तर्जनी दायें हाथ की मुट्ठी में रहें, इस भाँति 'न्यारैकेन्-इन्' मुद्रा बनती है।57
न्यारे-केन्-इन मुद्रा