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220... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
विधि
दोनों हथेलियाँ मध्यभाग में एक साथ मिली हुई, अंगूठे ऊपर उठे हुए, मध्यमा और कनिष्ठिका अपने प्रतिरूप अग्रभाग का स्पर्श करती हुई, तर्जनी प्रथम दो जोड़ पर से मुड़ती हुई एवं प्रथम पोर के पीछे का भाग अपने प्रतिरूप का स्पर्श करता हुआ तथा अनामिका हथेली के भीतर मुड़ी रहने पर हयग्रीवा मुद्रा बनती है।40
व्यग्रीवा मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करती है। इससे शरीर का भारीपन, जड़ता, दुर्बलता आदि दूर होकर शरीर स्निग्ध, कान्ति युक्त, ओजस्वी एवं स्वस्थ बनता है। • यह मुद्रा मणिपुर एवं मूलाधार चक्र को जागृत करते हुए शारीरिक आरोग्य, कर्म कुशलता एवं शक्ति वर्धन में सहायक बनती है। • एक्युप्रेशर सिद्धान्त के अनुसार यह मुद्रा एसिडिटी, उल्टी, सिरदर्द आदि को कम करती है। रक्तचाप, शर्करा, गर्मी, मासिक स्राव आदि का संतुलन करती है।