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216... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
गे-बकु-केन-इन् मुद्रा-1
यह मुद्रा संचार व्यवस्था को नियमित एवं प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करती है। साधक को साहसी, सहनशील एवं आशावादी बनाती है। द्वितीय विधि
यह मुद्रा शुद्धता और उदारता की सूचक है। इसमें दायां अंगूठा बायें अंगूठे के ऊपर रहता है। शेष वर्णन पूर्ववत।37 सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं जल तत्त्व का संतुलन करती है। इससे शरीर की जड़ता, दुर्बलता, मोटापा आदि दूर होते हैं तथा अस्थि, मज्जा, त्वचा, नाखुन, रक्त, वीर्य, लसिका आदि का कार्य नियमित होता है। • इस मुद्रा से शरीरगत मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावित होते हैं जो कामग्रन्थि को नियंत्रित करते हैं। इससे काम-वासना नियंत्रित रहती हैं तथा विधेयात्मक ऊर्जा का उर्ध्वारोहण होता है।