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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...213 चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय निग्रह आदि गुणों को प्रकट करती है। शरीरगत रक्त शर्करा, जल एवं सोडियम आदि का भी नियंत्रण करती है। • तैजस एवं आनंद केन्द्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा भावों को निर्मल, परिष्कृत एवं परिशुद्ध करती है तथा जीवन को उत्तुंगता एवं
ओजस्विता प्रदान करती है। 32. गणधारन्-टेम्बौरिन्-इन् मुद्रा
यह मुद्रा जापानी बौद्ध परम्परा से ही सम्बन्धित है। धर्मचक्र मुद्रा इसी का प्रकारान्तर है। यह संयुक्त मुद्रा कमर के स्तर पर की जाती है। विधि
दायें हाथ को ढीली मुट्ठी रूप बांधकर हथेली को मध्य भाग की तरफ रखें, बायीं हथेली को ऊर्ध्वाभिमुख करें, अंगूठा एवं तर्जनी के अग्रभाग को स्पर्शित करवायें और अग्रभाग को ढीली मुट्ठी में प्रविष्ट करवाएँ तथा शेष अंगुलियों को हथेली की ओर मोड़ने पर 'गणधारन् टेम्बौरिन्-इन्' मुद्रा बनती है।34
गणधारन्-टेम्बोरिन्-हन् मुद्रा