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जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक स्वरूप ...211 विधि ____ हथेली स्वयं के अभिमुख, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली के भीतर मुड़ी हुई एवं अंगूठा उनके ऊपर मुड़ा हुआ, तर्जनी और मध्यमा फैली हुई, प्रसरित दायें हाथ की अंगुलियाँ प्रसरित बायें हाथ की अंगुलियों पर क्रॉस करती हुई 90° का कोण बनाने पर गगनगंज मुद्रा बनती है।32
गगनगंज मुद्रा-1 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व का संतुलन करते हुए रुधिर, चर्बी, अस्थि, आदि के निर्माण में सहयोगी बनती है। • इस मुद्रा को धारण करने से मणिपुर एवं मूलाधार चक्र जागृत होते हैं। यह मधुमेह, कब्ज, अपच आदि शारीरिक विकृतियों का शमन करती है। • यह मुद्रा करने से एड्रिनल, पेन्क्रियाज एवं गोनाड्स का स्राव संतुलित होता है। साथ ही शर्करा, रक्तचाप आदि का भी साथ ही संतुलन होता है।