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172... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि
दायें हाथ से बायें हाथ को थोड़ा सा ऊपर रखते हुए दोनों हाथों को मध्यभाग में स्थिर करें, दायीं तर्जनी को बायीं तरफ और बायीं तर्जनी को दायीं तरफ फैलायें तथा शेष अंगुलियों एवं अंगूठों को मुट्ठी रूप में बांध लेने पर ‘सर्व तथागत अवलोकिते' मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• यह मुद्रा वायु एवं जल तत्त्व को प्रभावित करती है। इससे हृदय, फेफड़ें एवं गुर्दे सम्बन्धी रोगों से राहत मिलती है तथा रक्त, वीर्य, लसिका, मल-मूत्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं का भी निराकरण होता है और ज्ञान विकसित होता है। • यह मुद्रा करने वाला विशुद्धि एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करता है। इससे आन्तरिक ज्ञान का विकास एवं शान्त चित्त की प्राप्ति होती है। • थायरॉइड एवं गोनाड्स (काम ग्रंथियाँ) के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा घाव भरने, कोलेस्ट्राल, कैलशियम, आयोडिन आदि की क्षति पूर्ति करते हैं। 5. ज्ञान अवलोकिते मुद्रा |
जापानी बौद्ध परम्परा में अनुचरित यह मुद्रा वज्रायना देवी तारा की पूजा से सम्बन्धित है। यह 'म-म मडोस्' सम्बन्धी छ: मुद्राओं में से पाँचवीं मुद्रा है। सामान्यतया यह मुद्रा ज्ञान के तारे (केतु) आदि की प्रतीक है तथा विशेष रूप से सफेद टोरमा चढ़ाने की सूचक है। विधि
दायें हाथ में तर्जनी मुद्रा करें अर्थात् दायें हाथ को मध्य भाग में रखकर तर्जनी को बायीं ओर फैलायें तथा शेष अंगुलियों को भीतर में मोड़ें। बायें हाथ में ध्यान मुद्रा बनायें अर्थात् बायीं हथेली को मध्य भाग में दायीं तरफ मुख किये हुए रखें। इस भाँति ज्ञान अवलोकिते मुद्रा बनती है। ___मुद्रा मन्त्र है- 'ओम् ज्ञान अवलोकिते समन्त-स्फर्ण-रश्मि भाव समय महमनि दुरू दुरू हृदय ज्वालनी हुम्।' सुपरिणाम
• इस मुद्रा को धारण करने से वायु एवं जल तत्त्व संतुलित होते हैं। यह प्राणवायु को ऊर्ध्वगामी एवं सकारात्मक बनाते हुए वायु सम्बन्धी दोषों का