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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य......133 अतिशय में वृद्धि होती है तथा उपासक की मनोवांछाएँ पूर्ण होती है। इस मुद्रा के साथ यह मन्त्र उच्चारित होता है___'ओम् अह् वज्र वंशे हुम्' यह मुद्रा छाती के सामने धारण की जाती है। विधि
दायी हथेली स्वयं की तरफ, अंगुलियाँ मध्यभाग की ओर फैली हुई तथा बायीं हथेली के नीचे रहें। बायीं हथेली भी स्वयं की तरफ, अंगुलियाँ मध्यभाग की तरफ प्रसरित रहें। इस भाँति वज्रवंशे मुद्रा बनती है।21
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सुपरिणाम
वज वंशे मुद्रा • यह मुद्रा अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए स्वभाव को सौम्य बनाती है तथा पाचन तंत्र सम्बन्धी विकारों को दूर करती है। • इस मुद्रा के प्रयोग से मणिपुर चक्र प्रभावित होता है जिससे शक्ति एवं ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण होता है। यह मधुमेह, कब्ज, अपच आदि रोगों का उपशमन भी करती है। • तैजस केन्द्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा शारीरिक एवं आत्मिक कान्ति में अभिवृद्धि तथा प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करती है।