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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य......131 विधि
हथेलियाँ मध्यभाग की तरफ हल्की सी ऊपर उठी हुई रहें, अंगूठा और तर्जनी नीचे की ओर प्रसरित रहें, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली की तरफ मुड़ी हुई रहें, फिर दोनों हाथों को इस तरह मिलाया जायें कि अंगूठे और तर्जनी के अग्रभाग तथा मध्यमा का दूसरा जोड़ अपने प्रतिरूप का स्पर्श कर सकें, इस विधिपूर्वक वज्र पुष्पे मुद्रा बनती है।19 लाभ
• वज्र पुष्पे मुद्रा के नियमित प्रयोग से मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र के कार्य संतुलित रहते हैं। यह मुद्रा शरीर की कांति एवं तेज में वृद्धि करते हुए त्वचा विकार, नेत्र विकार, मूत्र प्रदेश के विकार को दूर करती है। इससे प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं का भी निवारण होता है। . यह मुद्रा पृथ्वी एवं जल तत्त्व का नियमन करते हुए स्थूलता, आलस्य एवं स्वार्थवृत्ति का निवारण करती है। इससे शरीर को स्वस्थता प्राप्त होती है। • इस मुद्रा को धारण करने से शक्ति केन्द्र एवं स्वास्थ्य केन्द्र प्रभावित होते हैं। यह कुण्डलिनी जागरण में सहायक बनते हुए आध्यात्मिक, व्यावहारिक एवं शारीरिक विकास में सहायता प्रदान करती है। 19. वज्र स्पर्श मुद्रा
बौद्ध परम्परा की पूजा-उपासना में प्रचलित यह मुद्रा अष्ट मंगल एवं सोलह आन्तरिक द्रव्य चढ़ाने के समय की जाती है। इस मुद्रा का प्रधान लक्ष्य वज्रायना देवी तारा की उपासना एवं भक्त की मनोकामना पूर्ति है। यह मुद्रा मन्त्रोच्चार के साथ की जाती है। मन्त्र निम्न है- 'ओम् अह् वज्र स्पर्श हुम्।'
दोनों हाथों में प्रतिबिम्ब की भाँति समान मुद्रा होती है। विधि ___ हथेलियों को मध्यभाग के सम्मुख रखें, मध्यमा और अंगूठे के अग्रभाग को मिलायें, शेष अंगुलियों को ऊपर की तरफ फैलायें, तदनन्तर दोनों हाथों को इतना निकट लायें कि दोनों अंगूठे और दोनों तर्जनी परस्पर मिल सकें, इस तरह वज्र स्पर्शे मुद्रा बनती है।20