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अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य......125
14. वज्र मृदंगे मुद्रा
बौद्ध परम्परा में प्रचलित यह मुद्रा वज्रायना देवी तारा की पूजा करने के उद्देश्य से की जाती है। इस आराधना के समय विषय सुख की प्रतिमूर्ति 16 देवियों में से किसी एक के सामने अष्टमंगल के साथ सोलह रहस्यमयी द्रव्य चढ़ाये जाते हैं उनमें उपासक की भावना देवी तारा से जुड़ी रहती है। इस समय मन्त्र भी बोला जाता है वह यह है... ___ 'ओम् अह् वज्र मृदंग हुम्।' इस मुद्रा को छाती के स्तर पर करते हैं। विधि ___ दायीं हथेली बाहर की तरफ, तर्जनी और मध्यमा ऊपर की तरफ फैली हुई, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली में मुड़ी हुई और अंगूठे का प्रथम पोर अनामिका के प्रथम पोर से स्पर्शित रहें। ___ बायीं हथेली अन्दर की तरफ, तर्जनी मध्यभाग की तरफ फैली हुई, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका हथेली में मुड़ी हुई तथा अंगूठे का प्रथम
वज मृदंगे मुद्रा