________________
124... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन विधि
हथेलियों को स्वयं के सम्मुख रखते हुए अंगुलियों एवं अंगूठों को ऊपर की तरफ फैलाएँ, फिर दोनों को समीप करने पर वज्र लास्ये मुद्रा बनती है।14
वज लास्ये मुद्रा
सुपरिणाम
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित करती है जिससे शारीरिक दुर्बलता, मोटापा, रूखापन, आलस्य आदि का निवारण होता है और कोमलता आदि गुणों का विकास होता है। • इस मुद्रा को करने से मूलाधार एवं मणिपुर चक्र जागृत होते हैं जिसके प्रभाव से डायबिटीज, अपच, गैस एवं पाचन सम्बन्धी विकृतियों में शांति मिलती है। • यह मुद्रा शक्ति केन्द्र एवं तैजस केन्द्र को जागरूक एवं काम-इच्छाओं का उपशमन कर ब्रह्म तेज में वृद्धि करती है और रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास करती है।