________________
116... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
सुपरिणाम
• यह अग्नि एवं जल तत्त्व को संतुलित करते हुए साधक में स्फूर्ति, जोश, उष्णता आदि का निर्माण करती है। • इस मुद्रा को करने से मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावित होते हैं। इससे शरीर को विशेष शक्ति प्राप्त होती है तथा वचनसिद्धि भी मिलती है। यह मधुमेह, कब्ज, अपच, गैस एवं पाचन सम्बन्धी विकृतियों को भी दूर करती है। • यह मुद्रा स्वास्थ्य केन्द्र एवं तैजस केन्द्र को प्रभावित करती हुई शरीर को एलर्जी से बचाती है, स्वर सुधारती है, व्यक्तित्व विकास करती है तथा आन्तरिक शारीरिक तन्त्रों को नियमित करती है। 7. वज्र दर्शे मुद्रा
यह तान्त्रिक मुद्रा बौद्ध परम्परा में धारण की जाती है। यह अष्ट मंगल से सन्दर्भित सोलह आंतरिक द्रव्य चढ़ाने की सूचक है। सोलह आन्तरिक भेंट रहस्यमयी और सोलह ऐन्द्रिक सुखों की देवियों से सम्बन्धित हैं। यह मुद्रा विशेष रूप से वज्रायना देवी तारा की पूजा के समय की जाती है। पूजा मन्त्र है'ओम् अह् वज्र दर्शे हुम्'। इस मुद्रा को छाती के सम्मुख धारण करते हैं।
वज दर्श मुद्रा