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भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की......89 सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि तत्त्व को संतुलित करती है। इससे स्नायु तंत्र की स्थितिस्थापकता, चेहरे की सुंदरता, रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है तथा क्रोध, उग्रता, आलस्य, निद्रा आदि का उपशमन होता है। • मणिपुर चक्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा पाचक रसों का उत्पादन करती है। इससे रक्त, शर्करा, जल एवं सोडियम आदि की मात्रा का नियमन होता है। यह तनाव प्रबंधन एवं चारित्र विकास में भी सहायक बनती है। • एड्रिनल एवं पेन्क्रियाज को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा रक्तचाप (B.P.), पित्त, एसिडिटी, तेज सिरदर्द आदि का संतुलन एवं चारित्र गठन करती है। 39. पेंग्-थोंग्-तंग्- एततक्कसतर्न मुद्रा (मुख्य शिष्य या अनुयायी चुनाव करने की मुद्रा) ___यह थायलैण्ड की बौद्ध परम्परा में प्रचलित एवं भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्तित 40 मुद्राओं और आसनों में से 39वीं मुद्रा है। भारत में इस मुद्रा को ‘तर्जनीध्यान' मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा भगवान बुद्ध द्वारा मुख्य शिष्य अथवा अनुयायी
पेंग्-थोंग-तंग्-सततक्कसतर्न मुद्रा