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82... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन
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पेंग्-टब्-फोल्म-म्वेंग मुद्रा सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं जल तत्त्व को संतुलित करती है। इनके संयोग से पित्त से उभरने वाली बीमारियाँ उपशान्त होती है। मूत्रदोष का परिहार होता है, गुर्दा स्वस्थ बनता है तथा शरीर सुंदर, आकर्षक एवं स्निग्ध बनता है। • यह मुद्रा मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत करती है। इससे कार्य शक्ति नियंत्रित रहती है। • एड्रिनल, पेन्क्रियाज एवं नाभि चक्र से सम्बन्धित दोषों का परिशोधन होता है। पाचक रसों के उत्पादन, रक्तशर्करा, जल एवं सोडियम
आदि का संतुलन होता है। प्राण वायु स्थिर एवं संतुलित होती है। नाभि खिसकने से होने वाली समस्याएँ दूर होती है। 34. पेंग-खक्रवक्कलि मुद्रा (चद्दर दूर करने की मुद्रा)
यह मुद्रा थायलैण्ड के बौद्धों में प्रचलित हैं। भारत में इसे पताका-ध्यान मुद्रा कहते है। भगवान बुद्ध द्वारा धारण की गई 40 मुद्राओं में से यह 34वीं मुद्रा है। यह पूजनीय वक्कली अर्थात ओढ़ी हुई चद्दर दूर करने की सूचक है। भगवान