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भगवान बुद्ध की मुख्य 5 एवं सामान्य 40 मुद्राओं की...
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उपदेश की सूचक है। मुद्रा स्वरूप के अनुसार इस मुद्रा में भगवान बुद्ध संघटक पदार्थों का प्रतिपादन करते थे। यह संयुक्त मुद्रा वीरासन या वज्रासन में की जाती है।
विधि
दाएं हाथ की अंगुलियों को नीचे की तरफ फैलाते हुए उसे कुर्सी या घुटने पर रखें। बायीं हथेली को सामने की ओर करते हुए अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग को मिलायें, शेष अंगुलियों को शिथिल रूप से ऊपर की ओर प्रसरित करने पर उपरोक्त मुद्रा बनती है | 35
बायां हाथ छाती के मध्यभाग के विपरीत रखा जाता है।
सुपरिणाम
• यह मुद्रा अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करती है। इससे हड्डियाँ, मांसपेशियाँ, त्वचा, नाखून, बाल, पाचन आदि से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण होता है और शरीर स्वस्थ, तंदुरूस्त स्फुर्तियुक्त, ओजस्वी एवं कांतिमय बनता है। • मणिपुर एवं मूलाधार चक्र को प्रभावित करते हुए यह मुद्रा जल, फास्फोरस, सोडियम, रक्त, शर्करा आदि का नियंत्रण करती है। एड्रिनल, पेन्क्रियाज एवं यौन ग्रंथियों के ऊपर इस मुद्रा का विशेष प्रभाव पड़ता है। यह रक्तशर्करा का पाचन तथा रक्तचाप, सिरदर्द, कमजोरी, अपच आदि का शमन करती है।
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33. पेंग् रब्- फोल्म- म्वेंग मुद्रा (आम ग्रहण की मुद्रा)
यह संयुक्त मुद्रा भारत में अंचित - निद्रातहस्त के नाम से प्रचलित है। मुख्य रूप से थायलैण्ड के बौद्ध समाज द्वारा यह प्रयुक्त होती है। भगवान बुद्ध की जीवन घटनाओं से सम्बन्धित 40 मुद्राओं में से यह 33वीं मुद्रा है। इसे बुद्ध द्वारा आम स्वीकार करने की सूचक मुद्रा बतलाया गया है। प्रस्तुत चित्र में एक हाथ में आम ग्रहण किया हुआ दर्शाया है।
यह मुद्रा वीरासन या वज्रासन में धारण की जाती है।
विधि
दायीं हथेली को आम पकड़े हुए की स्थिति में रखें तथा बायीं हथेली को प्रसरित अंगुलियों सहित घुटने पर अधोमुख रखने से पेंग् - रब्- फोल्म-म्वेंग मुद्रा बनती है। 36