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60... बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं का रहस्यात्मक परिशीलन सुपरिणाम ___ • पत्तकित् मुद्रा की साधना से मणिपुर एवं मूलाधार चक्र सक्रिय रहते हैं। इनके जागरण से विद्युत प्रवाह ऊर्ध्वगामी बनता है, मनोविकार घटते हैं एवं परमार्थ में रुचि बढ़ती है। • अग्नि एवं पृथ्वी को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीररस्थ चर्बी, मांस एवं हड्डियों को संतुलित रखती है। आहार का पाचन कर शरीर को शक्ति प्रदान करती है तथा अग्निरस, पाचक रस एवं पित्तरस को उत्पन्न करती है। • एडिनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह शरीर की प्रतिकारात्मक शक्ति का विकास करती है। शरीर को एलर्जी एवं रोगों से बचाती है। यह मुद्रा बाल बढ़ाने, स्वर सुधारने, शरीर के तापक्रम को संतुलित रखने में भी सहायक मुद्रा है। 17. पेंग्-फ्रा-कैत् ततु मुद्रा (केशों को उपहार रूप देने की मुद्रा)
थायलैण्ड की बौद्ध परम्परा में मान्य यह मुद्रा भारत में 'अर्धांजली ध्यान' मुद्रा के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान बुद्ध की जीवन घटना को उजागर करने
पेंग्-फ्रा-केत् तनु मुद्रा