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26... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
तत्त्वों के नाम
अंगुलियों के नाम अंगूठा (Thumb) तर्जनी (Index)
अग्नि तत्त्व (Fire-sun)
मध्यमा (Middle )
वायु तत्त्व (Air-wind) आकाश तत्त्व (Ether-space) पृथ्वी तत्त्व (Earth) जल तत्त्व (Water )
अनामिका (Ring)
कनिष्ठिका (Little)
मुद्रा की आवश्यक जानकारी
1. सामान्यतया मनुष्य पाँच तत्त्वों के संतुलन से स्वस्थ रह सकता है। ऋषिमहर्षियों द्वारा निर्दिष्ट एवं अनुभवियों द्वारा उपदर्शित मुद्राएँ बौद्धिक, मानसिक एवं दैहिक संतुलन की अपेक्षा से है अतः इन मुद्राओं का प्रयोग करने से पूर्व उसके प्रति दृढ़ विश्वास एवं अटूट श्रद्धा अवश्य होनी चाहिए।
2. शारीरिक संरचना के अनुसार अंगूठे के अग्रभाग पर दूसरी अंगुली के अग्रभाग को दबाने से, उस अंगुली का जो तत्त्व है वह बढ़ जाता है तथा अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के मूल पर लगाने / दबाने से उस अंगुली का जो तत्त्व है उसमें कमी आ जाती है ।
3. मुद्रा करते समय अंगुली और अंगूठे का स्पर्श सहज होना चाहिए। अंगूठे से अंगुली को सहज दबाव देना चाहिए और शेष अंगुलियाँ अमुकअमुक मुद्रा के नियमानुसार सीधी या एक-दूसरे से सटी रहनी चाहिए। हथेली का भाग मुद्रा नियम के अनुरूप रहना चाहिए। यदि अंगुलियाँ पहली बार में सही रूप से सीधी- टेढ़ी या सटी हुई न रह पायें तो आरामपूर्वक जितना बन सके, मुद्रा को यथारूप बनाने की कोशिश करें । तदनन्तर अभ्यास द्वारा धीरे-धीरे सही मुद्रा भी बन जाती है। 4. मुद्रा प्रयोग दोनों हाथों से करें, क्योंकि दायें हाथ की मुद्रा करने से शरीर के बाएँ भाग पर असर होता है और बाएँ हाथ की मुद्रा करने से शरीर के दायें भाग पर असर होता है। इस तरह शरीर और मन हर तरह से संतुलित रहता है ।
5. हर कोई स्त्री-पुरुष, बालक - वृद्ध, रोगी - निरोगी मुद्राओं का प्रयोग कर सकता है।