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अध्याय-4
गायत्री जाप साधना एवं संध्या कर्म आदि में उपयोगी मुद्राओं की रहस्यमयी विधियाँ
संध्या कर्म, गायत्री जाप एवं मंत्र साधना आदि वैदिक परम्परा के प्रसिद्ध विधान है। सनातन धर्म का प्रत्येक आराधक प्राय: इनसे परिचित है। इसी प्रमुखता को ध्यान में रखते हुए चौथे अध्याय में गायत्री पूजन सम्बन्धी मुद्राओं का स्वतंत्र वर्णन किया गया है। गायत्री मंत्र के चौबीस वर्ण है, प्रत्येक वर्ण के लिए एक स्वतंत्र मुद्रा का निर्देश है। परन्तु सामान्यतया गायत्री साधना के समय 32 मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है जो गायत्री देवी की सिद्धि में सहायक होती हैं। इन मुद्राओं में 24 मुद्राएँ गायत्री जाप से पूर्व तथा 8 मुद्राएँ गायत्री जाप के पश्चात की जाती है। उन मुद्राओं का स्वरूप इस प्रकार है
___ 1. सुमुखम् मुद्रा 2. सम्पुटम् मुद्रा 3. विततम् मुद्रा 4. विस्तृतम् मुद्रा 5. द्विमुखम् मुद्रा 6. त्रिमुखम् मुद्रा 7. चतुर्मुखम् मुद्रा 8. पंचमुखम् मुद्रा 9. षण्मुखम् मुद्रा 10. अधोमुख मुद्रा 11. व्यापकांजलिकम् मुद्रा 12. शकटम् मुद्रा 13. यमपाशम् मुद्रा 14. ग्रथितम् मुद्रा 15. सन्मुखोन्मुखम् मुद्रा 16. प्रलम्ब: मुद्रा 17. मुष्टिक: मुद्रा 18. मत्स्य मुद्रा 19. कूर्म मुद्रा 20. वराहक: मुद्रा 21. सिंहक्रान्तम् मुद्रा 22. महाक्रान्तम् मुद्रा 23. मुद्गर मुद्रा 24. पल्लव मुद्रा।' 1. सुमुख मुद्रा
सुमुख का शाब्दिक अर्थ है सुंदर मुखवाला, मनोहर मुखवाला, प्रसन्न मुखवाला। यह मुद्रा दिखने में सुन्दर लगती है अत: इसे सुमुख मुद्रा कहा गया है।
योगतत्त्व मुद्रा विज्ञान की यौगिक परम्परा में यह मुद्रा श्रद्धालुओं एवं अनुयायियों के द्वारा धारण की जाती है। यह गायत्री जाप से पूर्व की जाने वाली 24 मुद्राओं में से एक है। यह रोग शमन में अधिक उपयोगी है। विशेष रूप से केन्सर रोग का निवारण करती है।