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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...331 अध्यापन कार्य या गुरुत्व पद मात्र का निर्वहन करते हों ऐसा नहीं है अपितु साक्षात तीर्थंकर के अभाव में अरिहन्त के प्रतिनिधि होते हैं। वस्तुत: आचार्य का जीवन साधकों के आचार-विचार को तोलने का एक थर्मामीटर होता है। आचरण की शुद्धता को मापने एवं उस दिशा में अग्रसर होने के लिए दिशासूचक का कार्य करता है। आचार्य शब्द में निहित 'चर' धातु आचरण के अर्थ में प्रयुक्त है। आचार्य मुद्रा वैचारिक एवं आचारिक सम्पन्नता की प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती है।
आचार्य मुद्रा ॐ हीं णमो आयरियाणं विधि
पूर्व स्थिति के अनुसार हृदय के मध्य भाग पर दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा में रखें।
• तत्पश्चात आचार्य मन्त्र का तीन बार उच्चारण करें। • फिर श्वास भरते हुए दोनों हथेलियों को खोले और धीरे-धीरे कन्धे के