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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ
इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'इ' है।
111. संहार मुद्रा
संहार मुद्रा पूर्ववत मुद्रा नं. 44 के सदृश जाननी चाहिए।
संहार मुद्रा का दूसरा नाम विसर्जन मुद्रा है। यह मुद्रा मन्त्र विसर्जन आदि के प्रसंग पर, जाप साधना के अन्त में और सकल दोषों के निवारणार्थ की जाती है।
इसका बीज मन्त्र 'ई' है।
112. परमेष्ठी मुद्रा
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यह मुद्रा पूर्ववत मुद्रा नं. 45 के समान समझनी चाहिए ।
वासचूर्ण को अभिमन्त्रित करते समय, ध्वज की प्रतिष्ठा करते वक्त और आरती आदि का अवतरण करते समय इस मुद्रा का उपयोग करते हैं। इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'उ' है।
113. अंजलि मुद्रा
है।
इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा कथित मुद्रा नं. 48 के समतुल्य इस मुद्रा का प्रयोग समस्त प्रकार के संतोष गुण को उत्पन्न करने हेतु
करते हैं।
इसका बीज मन्त्र 'ऊ' है।
114. जिन मुद्रा
जिन मुद्रा का वर्णन पूर्ववत मुद्रा नं. 50 के समान है।
इस मुद्रा का प्रयोग करने से चोर - लूटेरों का भय समाप्त हो जाता है। इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'ए' है।
115. सौभाग्य मुद्रा
यह मुद्रा विधिमार्गप्रपा में प्रतिपादित मुद्रा नं. 51 के समान है। चराचर विश्व को अपने अनुकूल करने के लिए एवं कल्याण वृद्धि के लिए यह मुद्रा दर्शायी जाती है।
इसका बीज मन्त्र 'ऐ' है।
लघुविद्यानुवाद नामक लघुकृति में 45 मुद्राओं का वर्णन परिभाषा के साथ दिया गया है और कुछ मुद्राओं के चित्र भी दिये गये हैं। यद्यपि यह कृति