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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...277 विधि
"हस्तद्वयांगुष्ठद्वयतर्जनीद्वययोगे नेत्राकारे नेत्र मुद्रा।"
दोनों हाथों के दोनों अंगूठों और दोनों तर्जनियों को संयोजित करने पर नेत्राकार में नेत्र मुद्रा बनती है। सुपरिणाम ____ मुद्रा विशेषज्ञों के अनुसार नेत्र मुद्रा को धारण करने से आज्ञा चक्र एवं स्वाधिष्ठान चक्र प्रभावित होते हैं। यह मुद्रा स्मृति को स्थिर करती है, अन्तर्ज्ञान को जागृत करती है और कामेच्छाओं पर नियंत्रण रखती है।
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा खून की कमी, त्वचा रोग, बिस्तर गीला करना, नपुंसकता, ब्रेन ट्यूमर, पुरानी थकान, मिरगी, सिरदर्द आदि में लाभ करती है।
• इस मुद्रा को धारण करने से आकाश एवं जल तत्त्व संतुलित रहते हैं। यह प्रजनन एवं मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों का शमन करती है। इससे आत्मनियंत्रण एवं भावों में प्रवाह आता है तथा दिमाग शांत एवं स्थिर बनता है।
• पीयूष एवं प्रजनन ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा स्वभाव एवं व्यवहार नियंत्रण में सहायक बनती है। 31. विकसित पद्म मुद्रा ___हाथों की वह बनावट, जिसे देखकर खिले हुए कमल की स्मृति उभर आये, उसे विकसित पद्म मुद्रा कहते हैं।
यह मुद्रा प्रतिष्ठा विसर्जन के अवसर पर की जाती है। इस मुद्रा को दिखाते हुए आचार्य यह भावना करते हैं कि इस प्रतिष्ठा से अथवा अमुक मूलनायक भगवान के विराजमान होने से अमुक नगर एवं नगरवासी जन फलते-फूलते रहें।
___ इसका बीज मन्त्र 'ड' है। विधि
"कोशाकारावेव करौ कृत्वा पद्मपत्रवत् प्रसारितांगुलीको विकसित पद्म मुद्रा।"
दोनों हाथों को कोशाकार के समान करके, अंगुलियों को कमल के पत्तों की तरह विकसित करने पर विकसित पद्म मुद्रा बनती है।