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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...267
• यह मुद्रा आकाश एवं वायु तत्व को संतुलित कर हृदय, कंठ एवं मस्तिष्क सम्बन्धी समस्याओं का निवारण करती है। यह आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाती है तथा मन को शांत एवं एकाग्र बनाती है।
. पीयूष, पीनियल एवं थायमस ग्रंथि के स्राव को सक्रिय एवं नियन्त्रित करते हुए यह मुद्रा सिर के बालों एवं हड्डियों के विकास में सहायक बनती है। यह जीवन पद्धति, स्वभाव एवं मनोवृत्तियों को नियंत्रित करते हुए शारीरिक स्फूर्ति एवं स्वस्थता प्रदान करती है। 23. त्रिनेत्र मुद्रा
इस मुद्रा को देखने से तीन नेत्रों की कल्पना प्रतिबिम्बत हो उठती है, अत: इसे त्रिनेत्र मुद्रा कहते हैं।
सामान्य प्राणी के दो नेत्र होते हैं किन्तु ईश्वरीय गुणों के निकट पहुंचे अथवा प्रभु उपासना में निमग्न साधक का तीसरा नेत्र भी उद्घाटित हो जाता है। तीसरा नेत्र अंतर्नेत्र है। इसकी शक्ति अचिन्त्य है। इस नेत्र के प्रकट होने पर आत्मा के लिए दुरूह कार्य भी सुलभ हो जाते हैं।
त्रिनेत्र मुद्रा