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258... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
दोनों हाथों की कनिष्ठिका, अनामिका और मध्यमाओं को सर्प के फण की भाँति करने पर सामान्य जिनालय मुद्रा बनती है।
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सामान्य जिनालय मुद्रा सुपरिणाम
• सामान्य जिनालय मुद्रा को धारण करने से अनाहत एवं सहस्रार चक्र पर प्रभाव पड़ता है। यह मुद्रा साधक में प्रेम, दया, परोपकार के भाव जागृत करते हुए आन्तरिक ज्ञान एवं ऊर्जा का जागरण करती है। सृजनात्मक एवं कलात्मक कार्यों में रुचि उत्पन्न करती है।
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा मस्तिष्क समस्या, पुरानी बीमारी, पार्किन्सन्स रोग, एलर्जी तथा हृदय, श्वास, फेफड़ों से सम्बन्धित रोगों में लाभकारी है।
• वायु एवं आकाश तत्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा रक्त संचरण, श्वसन एवं मस्तिष्क सम्बन्धी समस्याओं में फायदा करती है और आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाती है।