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232... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा देवलोक में विद्यमान है। मुस्लिम परम्परा इसी तरह के वृक्ष को स्वर्ग में मानती है जिसे वे तूबा कहते हैं। ___ हिन्दी शब्दसागर कोश के अनुसार कल्पवृक्ष संसार में सब पेड़ों से ऊँचा, घेरदार और दीर्घजीवी होता है। इस तरह यह वृक्ष इच्छित फलदायक और वांछा पूरक है।
इस मुद्रा के माध्यम से कल्पवृक्ष की भाँति सर्व कामनाओं की सिद्धि होती है और साधक शीघ्रातिशीघ्र श्रेष्ठ लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। विधि
"भुजयोः कूर्परादारभ्य मीलितयोरङ्गुलीप्रसारणं कल्पवृक्ष मुद्रा सर्व वाञ्छित प्रदा।"
दोनों भुजाओं को कोहनियों से मिलाकर एवं अंगुलियों को फैलाने पर जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे कल्पवृक्ष मुद्रा कहते हैं। सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा के द्वारा हाथ की मांसपेशियों, हथेलियों एवं अंगुलियों पर विशेष दबाव पड़ता है। इससे यह सम्पूर्ण भाग सक्रिय एवं शक्ति स्रोत के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
यह मुद्रा थायरॉइड और पेराथायरॉइड ग्रंथियों के स्राव को नियन्त्रित रखती हैं। आँख, कर्ण एवं गले सम्बन्धी बीमारियों में शीघ्र लाभ पहुँचाती है।
आकाश एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा पाचन तंत्र, हृदय, श्वसन आदि की प्रक्रिया को नियंत्रित रखती है। सृजनात्मक एवं कलात्मक कार्यों में रुचि का वर्धन करती है।
इससे शारीरिक विकृतियाँ दूर होकर आरोग्य की प्राप्ति होती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मविकास की मूलशक्ति कुण्डलिनी अपनी स्वरूप की ओर उन्मुख बनती है।
चक्र विशेषज्ञों के अनुसार कल्पवृक्ष मुद्रा के प्रयोग से अनाहत, मणिपुर एवं ब्रह्म केन्द्र जागृत होते हैं। इससे अन्तरंग गुणों का प्रकटीकरण होता है।
थायमस, एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते