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228... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर ज्ञान मुद्रा से होने वाले अधिकांश फायदे इस मुद्रा में भी होते हैं। इस मुद्रा के प्रभाव से पेट के विभिन्न अवयवों की क्षमता बढ़ती है।
शारीरिक समस्याओं जैसे कंठ, कन्धे, कान आदि का संक्रमण तथा मस्तिष्क सम्बन्धी रोग जैसे मिरगी आदि का निवारण होता है।
यह मुद्रा आकाश एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए हृदय, श्वसन आदि के कार्यों का नियमन करती है तथा विचारों को स्थिर एवं सम्यक बनाती है।
इससे हृदय जनित सभी तरह के विकार उपशान्त होते हैं। शरीर एवं नाड़ी तन्त्र की शुद्धि होती है। यह मुद्रा गैस जनित बीमारी में तुरन्त लाभ पहँचाती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र के सक्रिय होने की पूर्ण शक्यता रहती है। अतिन्द्रिय क्षमता एवं ज्ञान जागरण में यह मुद्रा सहायक बनती है। अचेतन मन एवं चित्त संस्थान को प्रभावित करती है तथा दायें मस्तिष्क के निष्क्रिय अंश को जागृत करती है। ___ साधक अज्ञान से सम्यक्ज्ञान की ओर अभिमुख होता है तथा मिथ्यात्व की दशा से ऊपर उठता हुआ समस्त मिथ्या जालों से छुटकारा पा लेता है।
जिस तरह 'लता' किसी भी वस्तु का आलम्बन पाकर ऊपर की ओर चढ़ जाती है, उसी तरह इस मुद्रा से अभ्यासी का ज्ञान अभिवृद्ध होता रहता है। 22. मोक्ष कल्पलता मुद्रा
यहाँ मोक्ष शब्द सम्पूर्ण कर्मों के क्षय का प्रतीक है तथा कल्पलता शब्द कल्पवृक्ष का सूचक है। जिस मुद्रा के द्वारा सकल सिद्धियों के निवास रूप निर्वाण पद की प्राप्ति होती है, उसे मोक्ष कल्पलता मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा कल्पवृक्ष की भाँति निर्वाण रूपी श्रेष्ठ पद को उपलब्ध करवाने में सहयोग करती है। वस्तुत: यह मुद्रा नाम के अनुरूप फल प्रदान करने वाली है। विधि
_ "अङ्गुष्ठे अङ्गुलीसमूहात्पृथक्कृते अङ्गुली समूहे चलिते नाभेरारभ्य द्वादशान्तनयनं मोक्षकल्पलता मुद्रा।"