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________________ आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण ...213 आचारदिनकर के अनुसार धनुःसंधान मुद्रा समस्त प्रकार के भयों को दूर करने के निमित्त की जाती है। इस मुद्रा से सर्व प्रकार के भयों का हरण होता है। विधि "पद्मासनस्थस्य वामबाही प्रलम्बिते भूमावलग्ने दक्षिणे करे च दक्षिणाशागते बद्धमुष्टौ ऊर्ध्वस्थितस्य सा सैव स्थितिः धनुःसंधान मुद्रा। पद्मासन में स्थित होकर बाएँ हाथ से भूमि का स्पर्श करें तथा दाएं हाथ की मुट्ठी बांधकर उसे आकाश में ऊपर की ओर स्थिर करने पर जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे धनुःसंधान मुद्रा कहते हैं। सुपरिणाम • शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा के द्वारा गणधर मुद्रा के अधिकांश लाभ प्राप्त होते हैं। इस मुद्रा के अनवरत अभ्यास से हाथों के सभी जोड़ शक्तिशाली बनते हैं। मेरूदण्ड पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। ___ इससे अग्नि, वायु और आकाश तत्त्व संतुलित रहते हैं जिससे पाचन, रक्त संचरण एवं श्वसन तंत्र सुचारु रूप से कार्यान्वित होते हैं। यह मुद्रा पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, नाड़ी तंत्र, हृदय, फेफड़ें, रक्त संचरण प्रणाली, नाक, कान, मुँह आदि में उत्पन्न दोषों को दूर करती है। • भौतिक समस्याएँ जैसे कि गला, मुँह, कंठ, कान आदि की समस्या तथा ब्रेन ट्यूमर, मिरगी, सिरदर्द, पेट, लीवर, पित्ताशय आदि की समस्या निवारण में यह मुद्रा लाभकारी है। • आध्यात्मिक दृष्टि से चेतना की अन्तरंग शक्तियाँ जागृत होती है। चेतना के सभी स्तरों पर नियन्त्रण का सामर्थ्य विकसित हो जाता है। चेतना का अतीन्द्रिय तत्त्वों से सम्पर्क स्थापित होता है। यह मुद्रा मणिपुर, विशुद्धि एवं आज्ञा चक्र पर सम्यक प्रभाव डालती है। यह अतीन्द्रिय क्षमता के बीजांकुरों का प्रस्फुटन करते हुए संकल्पबल, पराक्रम, आत्मविश्वास एवं ज्ञान में वृद्धि करती है। अचेतन मन एवं चित्त संस्थान को प्रभावित कर दायें मस्तिष्क के 'सायलेन्ट एरिया' को जगाती है तथा स्मृति समस्या, मानसिक विकार, अविश्वास एवं कषायों का उपशमन करती है। • थायरॉइड, पेराथायरॉइड, थायमस, एडीनल एवं पैन्क्रियाज ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास करती है। भय, घबराहट, निराशा, आत्म विश्वास की कमी आदि को दूर करती है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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