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अध्याय-3
आचारदिनकर में उल्लिखित मुद्रा विधियों का रहस्यपूर्ण विश्लेषण
जैन वाङ्गमय के इतिहास में मध्यकाल एक Golden Period रहा । आचार्य हरिभद्रसूरि, आचार्य हेमचंद्र, आचार्य जिनप्रभसूरि आदि अनेक ज्ञान धुरंधर आचार्य इसी समय में हुए । विविध विषयों पर लेखनी निरंतर चलती रही एवं जैन साहित्य समृद्ध होता रहा। इसी श्रृंखला में आचार्य वर्धमानसूरि हुए जिन्होंने जैन विधि-विधानों में कई नए आयामों का समावेश किया। आचार दिनकर उन्हीं की एक सुप्रसिद्ध क्रियाकांड निर्देशक रचना है। इसमें कुल 23 मुद्राओं का उल्लेख है। यह मुद्राएँ साधना-उपासना के क्षेत्र में विशेष महत्त्व रखती है। इनका स्वरूप निम्न रूप में प्राप्त होता है ।
1. मुद्गर मुद्रा
मुद्गर एक प्रकार का शस्त्र है। इसे हथौड़ा, मूसल, गदा भी कहते हैं। यहाँ मुद्गर का तात्पर्य गदा से है।
तन्त्र विधि के अनुसार शरीर को शक्तिशाली बनाने हेतु इसका प्रयोग करते हैं। निम्न दर्शाये मुद्रा चित्र के अनुसार भी यह शक्ति चिह्न का प्रतीक मालूम होती है। गायत्री जाप में प्रयुक्त 24 मुद्राओं में से यह एक है। कुछ परम्पराएँ इस मुद्रा को रोगादि निवारण का प्रतीक मानती है। यह मुख्य रूप से कैन्सर रोग दूर करती है। आचार दिनकर के उल्लेखानुसार इस मुद्रा का प्रयोग विघ्न विघातनार्थ किया जाता है।
विधि
निधाय
"वामकलाचिकाया उपरि दक्षिणकलाचिकां पराङ्मुखहस्ताभ्यामङ्गुली विदर्भ्य तथास्थितावेव हस्तौ परिवर्त्य अंगुलीमध्ये विदध्यात् सा मुद्गर मुद्रा । "