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विधिमार्गप्रपा में निर्दिष्ट मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप......175
मंगल मुद्रा सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीर में तीनों अग्नियों को जागृत कर ऊर्ध्वगमन में सहायक बनती है।
हृदय शक्तिशाली एवं तंदुरुस्त बनता है। इससे पचन-पाचन की क्रिया सम्यक् रूप से संचालित होती है।
यह मुद्रा पाचन विकारों, शरीर आदि में दुर्गन्ध, मधुमेह, अल्सर, लीवर, पित्ताशय, आँखों की समस्या, बुखार आदि में फायदा करती है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा तामसिक वृत्तियों को दूर कर सात्त्विकता प्रदान करती है।
अन्तर्द्वन्द्वों को समाप्त कर दीर्घायु बनाती है। इससे साधक निरन्तर अध्यात्म अभिमुख रहता है।
इससे मणिपुर चक्र के कार्य सक्रिय हो उठते हैं। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान कर सह नियंत्रण एवं आत्मविश्वास में वृद्धि करती है। मनोविकारों का शमन एवं परमार्थ में रमण करवाती है।