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170... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा में मध्यमा जाप की मुद्रा का आकार भी निष्पन्न होता है। ___ वैज्ञानिक भी रुद्राक्ष को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उन्होंने अनुसंधान के आधार पर सिद्ध किया है कि इसे धारण करने से अथवा जाप आदि में इसका प्रयोग करने से हृदय की गति स्थिर रहती है। इस तरह रुद्राक्ष मुद्रा बाह्य और आभ्यन्तर समृद्धि का प्रतीक है। विधि
"वामहस्तस्य मध्यमांगुष्ठयोजनेन अक्षसूत्रमुद्रा।" ।
बायें हाथ की मध्यमा अंगुली और अंगूठे का संयोजन करने पर अक्षसूत्र मुद्रा बनती है। सुपरिणाम __ • शारीरिक दृष्टि से इसका प्रयोग श्रवण शक्ति को बढ़ाता है। यह मुद्रा वात रोगों में लाभदायी है। इससे आकाश तत्त्व संतुलित रहता है। इसी कारण हृदय गति रूकने की स्थिति नहीं बनती।
शरीर और नाड़ी तन्त्र की शुद्धि होती है। उदर के विविध अवयवों की क्षमता बढ़ती है। नाभि प्रदेश के विकार दूर होकर मल-मूत्र के दोष विसर्जित हो जाते हैं तथा शरीर निर्मल बनता है।
• आध्यात्मिक दृष्टि से निर्णय क्षमता विकसित होती हैं।
साधक उदार हृदयी बनता है। साधक की समस्त गतिविधियाँ आत्म सजगता से अनुपूरित होती है तथा उसे परमार्थ में रस आने लगता है। विशेष
• एक्यूप्रेशर प्रणाली के अनुसार नाक सम्बन्धी विकारों से राहत पाने हेतु यह अत्यन्त उपयोगी मुद्रा है।
• यह मुद्रा जल तत्त्व की अधिकता को दूर करती है। • शरीर के तरल पदार्थों के प्रवाह को नियमित करती है।
• इससे आँख सम्बन्धी दोष, टांसिल, मानसिक पिछड़ापन एवं मासिक धर्म सम्बन्धी विकारों का निवारण होता है।