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________________ 148... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा यह मुद्रा पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व के असंतुलन से होने वाले रोगों का उपचार करती है। • मानसिक दृष्टि से मस्तिष्क में एक केन्द्र है जो सम्पूर्ण शरीर की गतिविधियों को नियंत्रण में रखता है उसे सेरेबेलम कहते हैं। यह गर्दन के ऊपर सिर के पिछले भाग में मेरुदंड के शीर्ष में स्थित है। यह मुद्रा उक्त केन्द्र का सन्तुलन बनाये रखने, विकास करने एवं शरीर की गतिविधि को प्रोत्साहित करने में सहायता प्रदान करती है। • आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा अभ्यासी साधक को सांसारिक बन्धनों से मुक्ति दिलाकर उच्च साधना हेतु प्रवृत्त करती है तथा वैचारिक दृढ़ता में सहयोग करती है। इससे साधक को लघिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है। इस मुद्रा के प्रयोग से मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र की शक्तियों का आविर्भाव होता है। विशेष • इस मुद्रा में हाथों की आकृति गरुड़ सदृश दिखायी देती है अतः इसे गरुड़ मुद्रा कहते हैं। • एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार यह मुद्रा मानसिक तनाव, बौद्धिक क्षमता में मन्दता, इन्द्रियों की चंचलता आदि का निवारण करती है। • हृदय सम्बन्धी रोग, बेहोशी, श्वास नली में सूजन, बेचैनी, एपेन्डिससाइटिस, स्तनों की सूजन में कमी लाती है। • पित्ताशय को सन्तुलित कर शरीर को स्वस्थता प्रदान करती है। 56. नमस्कार मुद्रा यहाँ संस्कृतवाची नमस्कार शब्द सादर प्रणाम, सादर अभिवादन का सूचक है। दोनों हाथों को वन्दन की मुद्रा में संयोजित करना, परस्पर मिलाना नमस्कार कहलाता है। नमस्कार शब्द सुनने में जितना सरल है, उसका प्रयोग उतना ही कठिन है। हर व्यक्ति नमस्कार नहीं कर सकता। जो मान कषाय से रहित हो, पूज्यों के प्रति समर्पण रखता हो, गुणदृष्टि सम्पन्न हो, जिन मर्म को समझा हो, ऋज परिणामी हो वही नमस्कार कर सकता है। लौकिक व्यवहार में भी यह अनुभव करते हैं कि आम आदमी हर जगह नहीं झुकता है। सामान्यतया नमस्कार अपनों
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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