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104... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
परशु मुद्रा - 1
संभावना की जाती है कि यदि परशु गांधारी नामक 10वीं विद्यादेवी का प्रिय शस्त्र हो अथवा उसका चिह्न विशेष हो तो वह इस मुद्रा के प्रति अधिक सचेष्ट रहती हुई आगत बाधाओं का पहले से ही निवारण कर देती है ।
इस तरह परशु मुद्रा बाह्यतः चैतन्य शत्रुओं का तथा आभ्यन्तरतः पौदगलिक क्रोधादि शत्रुओं का छेदन करने के प्रयोजन से की जाती है। विधि
" पताकावत् हस्तं प्रसार्य अंगुष्ठ संयोजनेन परशुमुद्रा । " पताका के समान हाथ को प्रसारित करके अंगूठे का तर्जनी से संयोजन करने पर परशु मुद्रा बनती है।
सुपरिणाम
• शारीरिक स्तर पर इस मुद्रा के द्वारा गले सम्बन्धी रोगों में फायदा होता है। उदर जनित समस्त प्रकार के तन्त्र सशक्त बनते हैं। पाचन शक्ति का विकास