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102... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
कमण्डलु मुद्रा जैन परम्परा में दिगम्बर मुनि लिंग आदि स्थानों की शुद्धि के लिए इसी में रखे जल का उपयोग करते हैं।
यहाँ कमण्डलु मुद्रा अभिप्रायत: गौरी नामक नौवीं विद्यादेवी को प्रसन्न करने एवं देवी द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करने के उद्देश्य से दिखायी जाती है। विधि
"उन्नतपृष्ठहस्ताभ्यां संपुटं कृत्वा कनिष्ठिके निष्कास्य योजयेदिति कमण्डलु मुद्रा।" - पृष्ठ भाग की तरफ उठे हुए दोनों हाथों से संपुट बनायें। फिर कनिष्ठिका अंगुलियों को पृथक कर पुनः संयोजित करने पर कमण्डलु मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• शारीरिक दृष्टि से इस मुद्रा के अभ्यास से हारमोन्स पर नियंत्रण और नाक सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है। अनहत एवं स्वाधिष्ठान चक्र संतुलित होने से थायमस एवं प्रजनन ग्रन्थियों के स्राव सुचारु रूप से कार्य करने लगते हैं।