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________________ श्रुत संवर्धन की परम्परा के स्वर्ण पुरुष ___ श्री सोनाचंदजी बैद परिवार ___ संसार में मुख्य तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं- आत्मदृष्टा, युगद्रष्टा और भविष्यद्रष्टा। आत्मद्रष्टा व्यक्ति केवल अपने आपको देखते हैं, अपने बारे में सोचते हैं। उनकी समस्त गतिविधियाँ आत्म केन्द्रित होती हैं। युगद्रष्टा व्यक्तियों के सामने सम्पूर्ण युग रहता है। वे युग की स्थितियों का आकलन करते हैं, समस्याओं को देखते हैं और उनका समाधान करते हैं। भविष्यद्रष्टा व्यक्ति दूरगामी सोच रखते हैं, दूरदृष्टि से देखते हैं और आने वाले समय की पदचाप को पहचान कर पहले ही सावधान हो जाते हैं। ___ मानव कल्याण के प्रति समर्पित, समाज भूषण श्री सोनाचंदजी बैद समाज के ऐसे ही मूर्धन्य, सेवाभावी एवं पुरुषार्थी व्यक्ति हैं। ये जितने स्वयं के प्रति जागृत हैं उतने ही सामाजिक विकास हेतु चिंतित भी। आत्मद्रष्टा बन स्वयं का मार्ग शोधन करते हैं, युगद्रष्टा के रूप में विश्व की समस्त क्रियाओं को अपडेट रखते हुए समाज में नित नए आयाम प्रस्तुत करते हैं तथा भविष्यद्रष्टा के समान अपने अनुभव एवं दीर्घदृष्टि से सामाजिक चेतना का निर्माण करते हैं। समाज विकास इनका मूल ध्येय एवं समाज सेवा इनका मूल मंत्र है। वर्तमान में कोलकाता निवासी श्री सोनाचंदजी बैद का जन्म 4 दिसम्बर 1951 को अजिमगंज में हुआ। कलकत्ता की गोएन्का कॉलेज Calcutta University से LLB पूर्ण कर आपने एक सफल बनाया। ___“दीपकचंद सोनाचंद बैद चैरीटेबल ट्रस्ट" का गठन आपकी दानवीरता का ही परिचायक है। जो पद एवं प्रतिष्ठा आपने व्यापारिक क्षेत्र में प्राप्त की उससे कई गुणा अधिक वर्चस्व सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में हासिल किया है।
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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