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नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन ...li 1. हमारे द्वारा दर्शाए गए मुद्रा चित्रों के अंतर्गत कुछ मुद्राओं में दायाँ हाथ दर्शक के देखने के हिसाब से माना गया है तथा कुछ मुद्राओं
में दायाँ हाथ प्रयोक्ता के अनुसार दर्शाया गया है। 2. कुछ मुद्राएँ बाहर की तरफ दिखाने की है उनमें चित्रकार ने मुद्रा
बनाते समय वह Pose अपने मुख की तरफ दिखा दिया है। 3. कुछ मुद्राओं में एक हाथ को पार्श्व में दिखाना है उस हाथ को
स्पष्ट दर्शाने के लिए उसे पार्श्व में न दिखाकर थोड़ा सामने की
तरफ दिखाया है। 4. कुछ मुद्राएँ स्वरूप के अनुसार दिखाई नहीं जा सकती है अत: उनकी
यथावत् आकृति नहीं बन पाई हैं। 5. कुछ मुद्राएँ स्वरूप के अनुसार बनने के बावजूद भी चित्र में स्पष्टता ___नहीं उभर पाई हैं। 6. कुछ मुद्राओं के चित्र अत्यन्त कठिन होने से नहीं बन पाए हैं।
मुद्रा योग का द्वितीय खण्ड नाट्य मुद्राओं से सम्बन्धित है इसमें भरत के नाट्यशास्त्र आदि ग्रन्थों में उपलब्ध मुद्राओं का वैज्ञानिक अनुशीलन करते हुए उसे सात अध्यायों में गुम्फित किया है।
प्रथम अध्याय में मुद्रा के भिन्न-भिन्न प्रभावों का प्रतिपादन किया गया है।
द्वितीय अध्याय में भरत के नाट्य शास्त्र में विवेचित मुद्राओं का निरूपण करता है।
तृतीय अध्याय में नाट्यशास्त्र से उत्तरवर्ती ग्रन्थों में उपलब्ध नाट्य मुद्राओं की सूची मात्र दी गई है, क्योंकि परवर्ती ग्रन्थकारों ने प्राय: भरत के नाट्य-शास्त्र का ही अनुसरण किया है।
चतुर्थ अध्याय अभिनयदर्पण में वर्णित विशिष्ट मुद्राओं से सन्दर्भित है।
पाँचवें अध्याय में भारतीय नाट्य कला में प्रचलित सामान्य मुद्राओं का विश्लेषण किया गया है।
छठवें अध्याय में शिल्पकला एवं मूर्तिकला में प्राप्त हस्त मुद्राओं को सचित्र बताया गया है।
सातवाँ अध्याय उपसंहार के रूप में गुम्फित है। जिसमें रोगोपचार उपयोगी नाट्य मुद्राओं का चार्ट दिया गया है।