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भारतीय परम्परा में प्रचलित मुद्राओं की विधि एवं उद्देश्य......301
लाभ
चक्र- मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन, पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग-मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, मस्तिष्क, स्नायु तंत्र एवं आंख। - विभिन्न ग्रन्थों में वर्णित मुद्राओं के अतिरिक्त भी अनेक मुद्राओं का उल्लेख विविध स्थानों पर प्राप्त होता है। भारतीय परम्परा में ऐसी अनेक मुद्राएँ प्रचलित है। इनमें से कई मुद्राएँ अभिनय दर्पण आदि ग्रन्थों में वर्णित मुद्राओं से साम्य रखती है। परंतु फिर भी किंच भेद अवश्य रहा हुआ है। इन सभी का वर्णन करने का मुख्य उद्देश्य मुद्राओं की विराटता एवं उनमें रही वैभिन्यता को दिग्दर्शित करना है। साथ ही मुद्राओं के सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्वरूप से अवगत करवाना है। सन्दर्भ - सूची 1. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 49 2. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 50 3. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 46 4. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 43 5. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 49 6. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 47 7. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 49 8. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 50 9. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 47 10. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 50 11. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 45 12. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 46 13. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 46 14. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 50 15. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 50 16. द मिरर ऑफ गेश्चर, पृ. 49