SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन ...xv विनयाद्यनेक गुणगण गरीमायमाना विदुषी साध्वी श्री शशिप्रभा श्रीजी एवं सौम्यगुणा श्रीजी आदि सपरिवार सादर अनुवन्दना सुखशाता के साथ। आप शाता में होंगे। आपकी संयम यात्रा के साथ ज्ञान यात्रा अविरत चल रही होगी। आप जैन विधि विधानों के विषय में शोध प्रबंध लिख रहे हैं यह जानकर प्रसन्नता हुई। ज्ञान का मार्ग अनंत है। इसमें ज्ञानियों के तात्पयर्थि के साथ प्रामाणिकता पूर्ण व्यवहार होना आवश्यक रहेगा। आप इस कार्य में सुंदर कार्य करके ज्ञानीपासना द्वारा स्वश्रेय प्राप्त करें ऐसी शासन देव से प्रार्थना है। आचार्य राजशेखर सरि भद्रावती तीर्थ महत्तरा श्रमणीवर्या श्री शशिप्रभाश्री जी योग अनुवंदना! आपके द्वारा प्रेषित पत्र प्राप्त हुआ। इसी के साथ 'शोध प्रबन्ध सार' को देखकर ज्ञात हुआ कि. आपकी शिष्या साध्वी सौम्यगुणा श्री द्वारा किया गया बृहदस्तरीय शोध कार्य जैन समाज एवं श्रमणश्रमणी वर्ग हेतु उपयोगी जानकारी का कारण बनेगा। आपका प्रयास सराहनीय है। श्रुत भक्ति एवं ज्ञानाराधना स्वपर के आत्म कल्याण का कारण बने यही शुभाशीर्वाद। आचार्य रत्नाकरसरि जी कर रहे स्व-पर उपकार अन्तर्हदय से उनको अमृत उद्गार मानव जीवन का प्रासाद विविधता की बहुविध पृष्ठ भूमियों पर आधृत है। यह न ती सरल सीधा राजमार्ग (Straight like highway)
SR No.006253
Book TitleNatya Mudrao Ka Manovaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy