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32... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन प्रतिष्ठाप्य जिन बिम्बों की लम्बाई-चौड़ाई के प्रमाणानुसार करवाया जाता था, परन्तु आधुनिक प्रतिष्ठा महोत्सवों में यह सिद्धान्त प्रायः लागू नहीं किया जाता है। यदि इस नियम का पालन किया जाता भी हो तो भी अल्प आय-व्यय और नक्षत्र इन तीन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए निर्मित किया गया मण्डप सुलाक्षणिक माना जाता है। परन्तु आधुनिक मण्डपों में इनमें से कुछ भी नहीं देखा जाता है।
मण्डप का स्वरूप- समचौरस अथवा लम्ब चौरस भूमि भाग को शुद्ध कर एवं उसे लगभग डेढ़ हाथ ऊँचा करके उसके ऊपर मण्डप का निर्माण करवाना चाहिए। ऐसा मण्डप श्रेष्ठ गिना जाता है। यह मण्डप पूजा-विधि के अनुष्ठानों में अधिक उपयोगी होता है। :
प्रतिष्ठा मण्डप की लम्बाई और चौड़ाई दोनों विषम (1, 3, 5, 7, 9 आदि) अंकों के परिमाण की लेने से मण्डप का आय शुभ आता है और आय की अपेक्षा 'व्यय' हीन लेना चाहिए। इस नियम को ध्यान में रखते हुए प्रतिष्ठा मण्डप की भूमि निश्चित करनी चाहिए। ___ मण्डप का द्वार एक ही दिशा में रखना हो तो उस दिशा के नक्षत्र काल में द्वार का निर्माण करवाना चाहिए। यदि मण्डप निर्माता इस सम्बन्ध में अनभिज्ञ हो तो शिल्पी द्वारा तद्विषयक मार्गदर्शन प्राप्त कर फिर मण्डप निर्माण करवाये।
मण्डप कैसा हो? निर्वाणकलिका आदि प्रतिष्ठाकल्पों के अनुसार मण्डप निर्मल, विस्तीर्ण, श्रेष्ठ वेदिकायुक्त, तोरण वाला, लटकती हुई फूल मालाओं वाला, चार द्वार वाला और विविध वाजिंत्र शब्दों एवं मांगलिक गीतों से गुंजायमान होना चाहिए।
सामान्यतया मण्डप रचना आकर्षक और चित्तप्रसन्नक हो उस रीति से उसे अलंकृत करना चाहिए। वहाँ किसी भी प्रकार के भय, खेद, दुःख, उपद्रव अथवा शोकजनक दृश्यों का आलेखन या वैसे चित्रपट्ट नहीं लगाने चाहिए।
मण्डप को कैसे सजाएँ? मंडप को सोना और चाँदी की जरी से यक्त रेशमी वस्त्रों से सजाना चाहिए, क्योंकि उत्तम वर्ण वाले वस्त्रों की सजावट को देखने पर आन्तरिक प्रसन्नता में अभिवृद्धि होती है। इसके साथ ही तीर्थंकर परमात्मा के कल्याणक प्रसंगों, उद्बोधक घटनाओं, महातीर्थों की रचना, धार्मिक और ऐतिहासिक वैराग्योत्पादक दृश्यों की रचनाओं से मण्डप को विशेष सुशोभित करना चाहिए।