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30... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
नवनिर्मित जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा शीघ्र क्यों?- शास्त्र विधि के अनुसार जिन चैत्य और जिनबिम्ब का निर्माण हो जाने पर उसकी प्रतिष्ठा शीघ्र करवानी चाहिए। आचार्य हरिभद्रसूरि के मतानुसार सुविधि युक्त जिनबिम्ब तैयार हो जाने के पश्चात दस दिनों के अन्तर्गत उसकी प्रतिष्ठा करवा देनी चाहिए। यहाँ प्रश्न होता है कि प्रतिमा तैयार होने के पश्चात उसकी प्रतिष्ठा शीघ्र क्यों करवायें? इसका रहस्य उद्घाटित करते हुए षोडशक प्रकरण की टीका में बतलाया है कि कोई भी अच्छी वस्तु (मकान, वस्त्र, स्थान आदि) यदि बिना मालिक की हो तो वह अतिशीघ्र व्यंतर-वाणव्यंतर आदि देवों से अधिष्ठित हो जाती हैं। व्यन्तर आदि निम्न जाति के देव मन्दिर पर अधिकार कर लेते हैं, इससे जिनालय मिथ्यात्व वासित हो जाता है। फिर उस जिनालय में कुछ महीनों के बाद प्रभु प्रतिमा को विराजमान किया जाये तो भी वह चैत्य व्यन्तर देवों का निवास स्थान होने के कारण उस जिनालय में रोजाना क्लेश-लड़ाई होती रहती है इसीलिए प्रतिमा को शीघ्र प्रतिष्ठित करना चाहिए।
उक्त वर्णन से पुष्ट होता है कि जिनालय और जिनबिम्ब का निर्माण हो जाने पर प्रतिष्ठा का मांगलिक उत्सव शीघ्र सम्पन्न करना चाहिए। उसके लिए सर्वप्रथम मुहूर्त का निर्णय करना आवश्यक है।
__ 1. मुहूर्त निर्णय- प्रतिष्ठा मुहूर्त का निर्णय करने के लिए मूलनायक तीर्थंकर भगवान का नाम, श्रीसंघ का नाम, यदि व्यक्तिगत प्रतिष्ठा हो तो परिवार के मुखिया का नाम, नगर और नगरपति (राजा, सेठ आदि) के नाम इन सभी के राशियों का परस्पर मिलान करना चाहिए। फिर ज्योतिषाचार्य इन नामों के साथ मेल खाए ऐसे श्रेष्ठ दिन को प्रतिष्ठा मुहूर्त के रूप में चुने। तत्पश्चात चयनित शुभ मुहूर्त का प्रतिष्ठाचार्य के सम्मुख निवेदन करें और उनके करकमलों से मुहूर्त पत्र को ग्रहण करें। उसके बाद मुहूर्त का निर्णय हो जाने से प्रतिष्ठा उत्सव प्रारम्भ न हो तब तक प्रसन्नचित्त पूर्वक परमात्मा की पूजा, सेवा, भक्ति, दान, पुण्य, तप, जप, व्रत, प्रत्याख्यान आदि धार्मिक अनुष्ठान वैयक्तिक और सामूहिक रूप से आयोजित करते रहना चाहिए क्योंकि उसके अचिन्त्य प्रभाव से सर्वतोमुखी अभ्युदय होता रहता है।
वर्तमान में ज्योतिषाचार्य, प्रतिष्ठाचार्य अथवा ज्योतिर्विद मुनि इनमें से किसी के भी द्वारा निकाला गया मूहूर्त मान्य होता है।