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प्रतिष्ठा के मुख्य अधिकारियों का शास्त्रीय स्वरूप ...25 में की गयी है। इससे निर्णीत होता है कि पूजा आदि के कुछ आवश्यक कृत्य यजमान पत्नी के द्वारा सम्पन्न करवाये जाते होंगे।26
प्रतिष्ठा विधान सामुहिक स्तर पर प्रभावित करता है। इसका सम्यक नियोजन एवं इस अनुष्ठान के विभिन्न मुख्य घटकों का शास्त्रोक्त गुणयुक्त जीवन परमावश्यक है। आम जन मानस प्रतिष्ठा कर्ता आचार्य, गृहस्थ, विधिकारक, शिल्पी आदि के सम्यक स्वरूप को जान पाए एवं एक लोक कल्याणकारी प्रतिष्ठा महोत्सव का समायोजन कर सके तथा स्वयं को तद्योग्य बना सकें इसी भावना के साथ। सन्दर्भ-सूची 1. निर्वाण कलिका, पृ. 23 2. आचार्य जयसेन प्रतिष्ठापाठ, श्लो. 81-85 3. वही, श्लो. 86 4. प्रतिष्ठा सारोद्धार, 1/111-14 5. पंचाशक प्रकरण, 7/2-3 6. अहिगारी उ गिहत्थो, सुहसयणो वित्तसंजुओ कुलजो।
अक्खुद्दो धिइबलिओ, मइमं तह धम्मरागी अ॥ गुरूपूयाकरणरई सुस्सूसाइगुणसंगओ चेव । णायाऽहिगयविहाणस्स धणियं माणप्पहाणो य॥
वही, 7/4-5 7. न्यायाजितवित्तेशो मतिमान्, स्फीताशयः सदाचारः । गुर्वादिमतो जिनभवन, कारणस्याधिकारीति ॥
षोड़शक प्रकरण, 6/2 8. अहिगारी उ गिहत्थो, सुहसयणो वित्तसंजुओ कुलजो। अक्खुद्दो धिइबलिओ, मइमं तह धम्मरागी य॥
सम्यक्त्व प्रकरण, 1/21 9. अहियारी य इह च्चिय, निम्मलकुलसंभवो विभवभागी।
गुरुभत्तो सुहचित्तो, अच्चतं धम्मपडिबद्धो । बहुसुहिसयणो सुस्सूस, पमुहगुणसंगओ विसुद्धमई। आणापहाणचिट्ठो, दट्ठव्वो जिणहरविहाणे॥
कथारत्नकोश, भा.1, पृ. 123