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658... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन आलय : गृह देवालय आसन पट्ट : बैठने का आसन, तकिया, चैत्य गवाक्ष (छज्जेदार) आक
समतल गोटा। आयाग पट्ट : जैन मूर्तियों और प्रतीकों से अंकित शिला पट। आय : इसके द्वारा गृहादिक का शुभाशुभ देखा जाता है। इन्द्रकील : स्तंभिका जो ध्वजा दण्ड को मजबूत रखने के लिए साथ रखा
जाता है। इष्टिका : ईंट, इष्टका उदय : ऊँचाई उच्छ्राय
: ऊँचाई उत्क्षिप्त : गुम्बज का ऊँचा उठा हुआ चन्दोवा, छत। उत्तरंग : द्वार शाखा के ऊपर का मथाला। उत्तानपट्ट
: बड़ा पाट उत्सेध
: ऊँचाई उद्गम : चैत्य तोरणों की त्रिकोणिका जो सामान्यत: देव कोष्ठों पर
शिखर की भाँति प्रस्तुत की जाती है। उदुम्बर
: द्वार शाखा का निचला भाग, देहरी, देहली उद्गम : प्रासाद की दीवार का आठवाँ थर, जो सीढ़ी के आकार
वाला है। उद्भिन्न : चार प्रकार की आकृति वाली छत, छत का एक भेद। उप पीठ : दक्षिण भारतीय अधिष्ठान के नीचे का उप अधिष्ठान। उपान : दक्षिण भारतीय अधिष्ठान के सबसे नीचे का भाग या पाया,
जो उत्तर भारतीय खुर से मिलता जुलता है। उरुश्रृंग : मध्यवर्ती क्षेत्र से संयुक्त कंगूरा, शिखर के भद्र के ऊपर
चढ़ाये हुए श्रृंग, छातिया श्रृंग। ऊर्ध्वाचा : खड़ी मूर्ति कपोत : कार्निश की तरफ का नीचे की ओर झुका हुआ गोटा, जो
सामान्यत: चौकी (अधिष्ठान) के ऊपर होता है। : कणी, जाड्यकुम्भ और कणी, दो थर वाली प्रासाद की पीठ।
कणक