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654... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन कल्याणक अर्थात परमात्मा के जीवन की विशिष्ट घटनाएँ। परमात्मा का जीवन सम्पूर्ण जगत के लिए एक आदर्श चरित्र है तथा जीवन जीने की कला सिखाने हेतु सर्वश्रेष्ठ मार्गप्रदर्शक है। परमात्मा के जीवन के विषय में जानने के पश्चात उनके प्रति स्वयमेव श्रद्धा के भाव अभिवृद्ध होने लगते हैं। परमात्मा को देखते ही अन्तरंग में आल्हाद एवं अहोभाव प्रस्फुटित होते हैं। जिससे जीव अनन्त कर्मों की निर्जरा कर परमात्म अवस्था की ओर शीघ्र अग्रसर हो सकता है। किसी कवि ने कहा है- "कल्याणक थी कल्याण" कल्याणक, यह कल्याण का मंगल स्रोत है। परमात्मा ने जन्म से लेकर मृत्यु तक कैसे जीवन जिया? कैसे अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया? सम एवं विषम परिस्थितियों में स्वयं को कैसे समत्व भाव से युक्त रखा? न उपकारी के प्रति राग किया न अपकारी के प्रति द्वेष। इन सबको जानने एवं समझने हेतु पंचकल्याणक महोत्सव एक अभिष्ट अनुष्ठान है। कल्याणक की महिमा का वर्णन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं
सयल जिणेसर पायनमी, कल्याणक विधि तास ।
वर्णवतां सुणतां थकां, संघनी पूरे आस ।। पंच कल्याणक की मात्र प्रत्यक्ष आराधना ही नहीं अपितु परोक्ष रूप में उसका वर्णन और श्रवण भी समस्त आशाओं को पूर्ण करता है। इसीलिए प्रतिष्ठा-अंजनशलाका आदि अनुष्ठानों से पूर्व पंच कल्याणक उत्सव का आयोजन किया जाता है। ताकि नगरवासीजन अहोभाव पूर्वक परमात्मा को अपना स्वामी समझकर उनकी भक्ति कर सकें। ___कुछ लोगों के मन में प्रश्न हो सकता है कि परमात्मा की स्थापना मात्र करने के लिए इतने अधिक विधि-विधानों का विधिपूर्वक पालन क्यों आवश्यक है? यहाँ प्रमुखता तो वैसे भी भावों को दी गई है। जिन धर्म भाव प्रधान है और प्रतिष्ठा में भी भावों की प्रमुखता रहती है पर द्रव्य क्रियाओं का भी अपना स्थान एवं महत्त्व है। कोई भी क्रिया विधि पूर्वक सम्पन्न करने पर ही अभीष्ट फलदायक होती है। केवल एक प्याली चाय बनानी हो या एक कटोरी हलवा बनाना हो तो उसकी भी सम्यक विधि क्रमानुसार ज्ञात होना आवश्यक है। हलवा बनाने की सम्पूर्ण विधि का पालन किया जाए और यदि शक्कर के स्थान पर नमक डाल दिया जाए तो क्या होगा? चाय बनाते हुए चाय पत्ती के प्रमाण में मसाला और मसाले के स्थान पर शक्कर डाल दी जाए तो क्या होगा? क्या यह चीजें किसी