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9. केतु ग्रह वर्ण
हाथ
वाहन
प्रतिरूप
सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का शास्त्रीय स्वरूप ...645
कृष्ण
माला, कुंडी
साँप
राहु
क्षेत्रपाल आदि देवों का सचित्र स्वरूप
क्षेत्रपाल देव
प्रत्येक जैन मन्दिर में क्षेत्रपाल की स्थापना अनिवार्य रूप से की जाती है। यह स्थापना उस क्षेत्र के अधिष्ठायक या रक्षक देव के रूप में मणिभद्र, वीरभद्र, भैरव आदि के नाम से करते हैं। क्षेत्रपाल के पाँच नाम हैं- 1. विजयभद्र 2. मणिभद्र 3. वीरभद्र 4. भैरव और 5. अपराजित। इन नामों से स्पष्ट होता है कि जिनालय में भैरव आदि क्षेत्रपाल देव माने जाते हैं। यद्यपि इनका स्वरूप उग्र है किन्तु पूजा के लिए उग्र स्वरूप का आधार सामान्यतः ठीक नहीं होता है अतएव क्षेत्रपाल की पूजा निमित्त शांत प्रतिबिम्ब रखा जाता है।
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों जैन सम्प्रदायों में क्षेत्रपाल की पूजा-आरती समान रूप से मान्य है यद्यपि निज परम्परानुसार पूजा पद्धतियों में किंचित् अन्तर हो सकता है फिर भी प्रतिमा पर सिंदूर लेपन और तेल चढ़ाना - ये विधियाँ दोनों जगह समान है। ये देव तात्कालिक रूप से फलदायक माने जाते हैं। इनकी स्थापना एवं पूजा-अर्चना से मन्दिर के आस-पास की सारी जगह सुरक्षित हो जाती है तथा वहाँ जल्दी से किसी तरह का उपद्रव या अनिष्ट नहीं हो सकता।
जैन परम्परा में शासन देवता के रूप में यक्ष-यक्षिणियों और क्षेत्रपालों के रूप में भैरवों की उपासना आज भी जीवित है। वर्तमान में भोमियाजी, नाकोड़ा भैरव, घण्टाकर्ण महावीर, मणिभद्रवीर आदि यक्ष अति प्रभावक माने जाते हैं।
क्षेत्रपाल की स्थापना मूलनायक प्रतिमा के दाहिनी ओर ईशान कोण से जोड़े हुए दक्षिणाभिमुख (दक्षिण दिशा की तरफ मुख रखते हुए) करनी चाहिए।
क्षेत्रपाल की पूजादि के विषय में यह स्मरण रखना अत्यंत आवश्यक है कि इन देवों का विनयादि व्यवहार एवं पूजादि उपचार जिनेश्वर प्रभु के समान नहीं किया जाता। तीर्थंकर प्रभु की पूजा एवं क्षेत्रपाल देव के सम्मानादि में महत अन्तर है। क्षेत्रपाल की विनय आदि भक्ति साधर्मिक बन्धुवत की जानी चाहिए,